Kahanikar Studios http://kahanikarstudios.com/ Kahanikar Studios Sun, 21 May 2023 21:56:29 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.2 http://kahanikarstudios.com/wp-content/uploads/2023/05/cropped-cropped-23A50468-19F4-4C28-B802-ACDB266C21F9-32x32.png Kahanikar Studios http://kahanikarstudios.com/ 32 32 स्थिरता एक शिशा http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a5%e0%a4%bf%e0%a4%b0%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%8f%e0%a4%95-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b6%e0%a4%be/ http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a5%e0%a4%bf%e0%a4%b0%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%8f%e0%a4%95-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b6%e0%a4%be/#respond Sun, 21 May 2023 21:56:28 +0000 http://kahanikarstudios.com/?p=69 क्या तालाब की स्थिरता ही उसकी सबसे बड़ी शत्रु और उसका उथलापन, छिछलापन ही उसका सबसे करीबी मित्र होता है ? स्थिरता कितनी शीशे सी होती है तालाब की। एकदम तिलस्मी। मनो वो एक दिवार खड़े कर देती है तालाब और मेरी आँखों के बीच। जैसे जादूगर हाथी गायब करने से पहले स्टेज पर धुंए […]

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क्या तालाब की स्थिरता ही उसकी सबसे बड़ी शत्रु और उसका उथलापन, छिछलापन ही उसका सबसे करीबी मित्र होता है ?

स्थिरता कितनी शीशे सी होती है तालाब की। एकदम तिलस्मी। मनो वो एक दिवार खड़े कर देती है तालाब और मेरी आँखों के बीच। जैसे जादूगर हाथी गायब करने से पहले स्टेज पर धुंए की दिवार खड़े कर देता था। 

मैं उस तलब की सतह को चीर कर उसके भीतर की दुनिया को जानने की कितनी ही कोशिश क्यों न कर लूँ, मगर ये स्थिरता का शिक्षा कभी पारदर्शी होता ही नहीं है। 

मैं जितना ही जादूगर के धुंए के पास जाता था उतना ही मुझे मेरे ही कद-काठी की एक आकृति उस धुंए में बुनती दिखती। अब होने को उसका अस्तित्व तो मेरे जैसा ही दिखता था। वही दो हाथ, दो पैर, एक सर, दो कान। सब वैसा ही है। असल जैसा। पर सब नक़ल है। और नक़ल हमेशा जाली होता है, सत्य नहीं। 

जैसे ही आकृति के पास जाता हूँ उसे पकड़ने को तो वो हाथ नहीं आता है, हाथ आता है तो एक पत्थर जो मेरे जेब से निकला है। अभी-अभी, इस आकृति को पकड़ने से ठीक पहले, और स्थिरता का शीशे बनने के ठीक बाद। 

मैंने इस पत्थर को कहीं पहले देखा है। उस झील के पास जो घिरा हुआ है, पहाड़ की बर्फीली चोटियों और धुंध से। धुंध अलग, जगह अलग, पानी अलग, पर शीशा वही। स्थिरता का। मैं जहाँ खड़ा हूँ, उसके ठीक उस पार खड़ी है वो आकृति जिसकी आँखें नहीं है, पर फिर भी वो मेरी ओर ही देख रहा है। वो इन पहाड़ो को देख रहा है अब। 

सोचता होगा, कितनी खोखली है इनकी खूबसूरती। वो केवल एक प्रतिबिब्म है, वो भी ऐसा प्रतिबिम्ब जो की स्थिरता के शीशे को कभी भेद नहीं सकेगा। आज तक पहाड़ अंदर नहीं पहुंच पाए।  वे केवल सतह पर ही है। जैसे मैं कभी उस हाथी को ढूंढ़ नहीं पाया। 

मैं शीशा तोड़ने उस पत्थर को झील पर फेकता हूँ तो झील का पानी पत्थर सा कड़क हो जाता है। मेरा फेका पत्थर, पत्थर सी झील पर टिप्पा खता हुआ जा लगता है उस आकृति की आँखों को। और वो आकृति गिर जाती है झील में और उसका पानी हो जाता है स्याह। 

इस स्याह में अब कोई प्रतिबिम्ब नहीं दिख रहा। न पहाड़ों का, न धुंध का, और न ही मेरा। और तभी बर्फीली पहाड़ों से उतरता हुआ मुझे एक हाथी दीखता है। नहीं, असल हठी नहीं, बल्कि उसकी आकृति दिखती है। अब वो पानी में गोते लगा रहा है। मैं स्तभ्ध सा इस कोने पर खड़े हूँ की तभी वो हाथी अपने सूंड से मुझे शीशे की पार की दुनिया में खीच लेता है। 

स्थिरता के शीशे के इस पार सब छिछला है, सब उथल-पुथल है। यहाँ का हर व्यक्ति प्रतिबिम्ब नहीं फेकता। सब सबके करीबी मित्र है। इस पार की दुनिया में जादूगर हाथी गायब नहीं करता। वो गायब किया हुआ हाथी, वापस लाता है। 

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मैं। http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a5%a4/ http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a5%a4/#respond Sun, 21 May 2023 21:55:39 +0000 http://kahanikarstudios.com/?p=67 मैं कौन हूं? ये मैं अक्सर सोचता हूं। मैं ये अक्सर सोचता हूं कि अगर मैं मैं नहीं होता तो कौन होता? शास्त्रों की मानो तो मुझे इस इंसान योनि में जन्म, करोड़ों योनियों में जन्म लेने के बाद, हजारों सालों और लाखों अच्छे कर्मों के बाद मिला है। और मुझे इस योनि में जन्म […]

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मैं कौन हूं?

ये मैं अक्सर सोचता हूं। मैं ये अक्सर सोचता हूं कि अगर मैं मैं नहीं होता तो कौन होता? शास्त्रों की मानो तो मुझे इस इंसान योनि में जन्म, करोड़ों योनियों में जन्म लेने के बाद, हजारों सालों और लाखों अच्छे कर्मों के बाद मिला है। और मुझे इस योनि में जन्म लेने का इस संसार और इस अंतरिक्ष को आभार व्यक्त करना चाहिए।

मगर…

बात आभार व्यक्त करने की नहीं है, बात इस सवाल कि है कि मैं कौन हूं। कि मैं क्या हूं? बस एक हाड़ मांस का पुतला, जिसपर एक चमड़ी लगाई गई है, या वो आत्मा को नश्वर है?

और अगर आत्मा नश्वर है, तो मैं भी अमर ही हुआ ना?

और अगर मैं हमेशा से अमर था, तो मेरे अलग अलग योनि में जन्म लेने की बात गलत नहीं हुई?

मैं एक सवाल हूं या जवाब?

मैं एक कहानी हूं या रहस्य?

मैं हूं भी या नहीं?

ये सारे सवालों के जवाब मैं अक्सर ढूंढने की कोशिश करता हूं। कभी किसी पुराण में, तो कभी शून्य के गहरे सागर में। मगर आजतक में इस सवाल के वृत्त में यूं घूम रहा हूं जैसे इसका कोई अंत ही नहीं हो।

अंत, मुझे बचपन से अंत बड़ा रोचक लगता था। हमे हमेशा से पुराणों और शास्त्रों में सिखाया है, कि “मोक्ष” की प्राप्ति ही मनुष्य जीवन का धेय ,कर्तव्य और अंत है।मगर मेरा सवाल ये है कि अंत तो खुद में एक नया आरंभ होता है। तो फिर हम इस मोक्ष के वृत्त में क्यूं फस जाते है? हम हमेशा आरंभ को ज़रा ज्यादा तव्वाजो देते है। मगर अंत के बिना आरंभ का कोई मूल्य है भी?

मैं समय हूं? या मैं स्थिर हूं?

मैं बादल हूं ? या मैं बिजली हूं?

मैं शायद पानी हूं। हां मैं जल ही तो हूं। जिस प्रकार जल सबसे पूर्व मेघा बनकर सुखी ज़मीन पर बरसता है और, एक जल स्त्रोत बन जाता है। और उसके पश्चात वो एक नदी कि धारा में सम्मिलित हो, सागर में मिलने के लिए तत्पर हो जाता है। जो कि फिर से भाप बनकर, मेघा में परिवर्तित हो जाता है। मनुष्य भी तो उस ही जल की तरह होते है। जो कि समय – समय में खुदको कभी स्थिति तो कभी परिस्थिति के साचे में ढालकर यू बदल लेते है कि मानो उसके परिवर्तन का पता ही नहीं चले!

मैं कौन हूं? मैं क्या हूं?

इस सवाल का शायद कोई जवाब ही नहीं है। क्यूंकि शायद ये सवाल ही ग़लत है। शायद सवाल मैं क्या हूं नहीं, मैं क्यूं हूं होना चाहिए। मेरे जीवित

मेरे जीवित होने का क्या उदेश्य या धेय क्या है? ताकि मैं उसे सम्पूर्ण कर, संतुष्ट हो सकूं।

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Ghazal 2 http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/ghazal-2/ http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/ghazal-2/#respond Sun, 21 May 2023 21:54:42 +0000 http://kahanikarstudios.com/?p=65 बाप बहुत लाचार होता है तो बस सो लेता है, बाप बिना बोले, सब मुसीबतें झेल लेता है। कभी किसी दिन ज्यादा गुस्सा आ जाए अगर, ज्यादा से ज्यादा वो बस कमरा छोड़ देता है। चट्टान का सीना, बाज़ू लोहे के लिए, परिवार के नाम पर संग्राम छेड़ देता है। कभी जेब में 10 ही […]

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बाप बहुत लाचार होता है तो बस सो लेता है,

बाप बिना बोले, सब मुसीबतें झेल लेता है।

कभी किसी दिन ज्यादा गुस्सा आ जाए अगर,

ज्यादा से ज्यादा वो बस कमरा छोड़ देता है।

चट्टान का सीना, बाज़ू लोहे के लिए,

परिवार के नाम पर संग्राम छेड़ देता है।

कभी जेब में 10 ही हो अगर,

खुद भूखा रहकर, बच्चो को सोमसे ले देता है।

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Ghazal 1 http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/ghazal-1/ http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/ghazal-1/#respond Sun, 21 May 2023 21:54:04 +0000 http://kahanikarstudios.com/?p=63 वक्त बदलता आया है, और फिर बदलेगा, ये अठन्नी हाथ की, मैं 100 में बदलेगा । अगर ये दुनिया ज़ालिम है तो होने दो, मैं आज मासूम हूं, कल मैं भी बदलेगा। मसले जो भी आज जिंदगी में मेरे है, तुम देखना, उन्हें मैं कल मौकों में बदलेगा। मैं रोज रात देखता हूं इन लकीरों […]

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वक्त बदलता आया है, और फिर बदलेगा,

ये अठन्नी हाथ की, मैं 100 में बदलेगा ।

अगर ये दुनिया ज़ालिम है तो होने दो,

मैं आज मासूम हूं, कल मैं भी बदलेगा।

मसले जो भी आज जिंदगी में मेरे है,

तुम देखना, उन्हें मैं कल मौकों में बदलेगा।

मैं रोज रात देखता हूं इन लकीरों को,

इन्हे घिस कर, मैं कल अपना तकदीर बदलेगा।

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एक दिन ऐसा आए कभी http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%8f%e0%a4%95-%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%a8-%e0%a4%90%e0%a4%b8%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%8f-%e0%a4%95%e0%a4%ad%e0%a5%80/ http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%8f%e0%a4%95-%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%a8-%e0%a4%90%e0%a4%b8%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%8f-%e0%a4%95%e0%a4%ad%e0%a5%80/#respond Sun, 21 May 2023 21:44:07 +0000 http://kahanikarstudios.com/?p=60 एक दिन ऐसा आए कभी, कैनवास में बनाऊं मैं होठ तेरे, जो छूउं तेरे उन होठों को, शर्मा तू, गली में जा भागे। जो सोचूं तेरी आंखों को, इन आंखों में पानी आ जाए, जो ना पोंछुं इन अश्कों को, तो बाढ़ कहीं ना आ जाए। जो पकङूं तेरी कलाई को, तू आह करे, दिल […]

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एक दिन ऐसा आए कभी,

कैनवास में बनाऊं मैं होठ तेरे,

जो छूउं तेरे उन होठों को,

शर्मा तू, गली में जा भागे।

जो सोचूं तेरी आंखों को,

इन आंखों में पानी आ जाए,

जो ना पोंछुं इन अश्कों को,

तो बाढ़ कहीं ना आ जाए।

जो पकङूं तेरी कलाई को,

तू आह करे, दिल खो जाए,

बनाऊं तेरी तस्वीर जो मैं,

सर्दी में गर्मी हो जाए,

काश कि ऐसा भी हो जानी,

जो मैं सोचूं वो हो जाए,

मैं जैसे ही तुझको सोचूं,

तू मेरे सामने हो जाए।

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बंजारे http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%ac%e0%a4%82%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%87/ http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%ac%e0%a4%82%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%87/#respond Sun, 21 May 2023 21:43:03 +0000 http://kahanikarstudios.com/?p=58 ख़्वाब लिए इन आंखों में, फिरता रहता क्यूं तू बंजारे? किसी सफ़र के किसी शहर में, क्या मिलेंगे तुझको कई अफसाने? ज़िद लिए इस मुट्ठी में, लड़ता आखिर क्यूं इस पर्वत से? नदी की धारा को क्यों काटे? इन सबसे क्यूं दूर तू भागे? ये सब बस कुछ ही लम्हें है, नसीब है इनका बीत […]

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ख़्वाब लिए इन आंखों में,

फिरता रहता क्यूं तू बंजारे?

किसी सफ़र के किसी शहर में,

क्या मिलेंगे तुझको कई अफसाने?

ज़िद लिए इस मुट्ठी में,

लड़ता आखिर क्यूं इस पर्वत से?

नदी की धारा को क्यों काटे?

इन सबसे क्यूं दूर तू भागे?

ये सब बस कुछ ही लम्हें है,

नसीब है इनका बीत जाता,

इन सबके जो बाद आएंगे,

उन सबको है तुझे साजना,

भाग ना इनसे तू बंजारे,

ये सब तो तेरे साथी हैं,

इन सबसे क्या तुझे चुभन है?

इन सबसे क्या तुझे घुटन है?

उठ जा रही काम बहुत है,

बची सुबह और शाम बहुत है,

थम कर उंगली मेरी अब तू,

पार सफर कर ओ बंजारे,

ख़्वाब लिए इन आंखों में,

फिरता रहता क्यूं तू बंजारे??

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http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%ac%e0%a4%82%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%87/feed/ 0
झूठ http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%9d%e0%a5%82%e0%a4%a0/ http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%9d%e0%a5%82%e0%a4%a0/#respond Sun, 21 May 2023 21:41:15 +0000 http://kahanikarstudios.com/?p=56 झूठ यथार्थ का, यथार्थ अतीत का अतीत स्वप्न का। कल्पना सत्य की, सत्य कलम कि, कलम पैसों कि, पैसे स्वप्न के। भूख शौहरत की, शौहरत असत्य का, असत्य मेरा, और मैं, स्वप्न का।

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झूठ यथार्थ का,

यथार्थ अतीत का

अतीत स्वप्न का।

कल्पना सत्य की,

सत्य कलम कि,

कलम पैसों कि,

पैसे स्वप्न के।

भूख शौहरत की,

शौहरत असत्य का,

असत्य मेरा,

और मैं,

स्वप्न का।

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तू पंख लगा दे http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%a4%e0%a5%82-%e0%a4%aa%e0%a4%82%e0%a4%96-%e0%a4%b2%e0%a4%97%e0%a4%be-%e0%a4%a6%e0%a5%87/ http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%a4%e0%a5%82-%e0%a4%aa%e0%a4%82%e0%a4%96-%e0%a4%b2%e0%a4%97%e0%a4%be-%e0%a4%a6%e0%a5%87/#respond Sun, 21 May 2023 21:40:00 +0000 http://kahanikarstudios.com/?p=54 तू पंख लगा दे सपनों को, आज़ादी तो तेरी भी है, तू खोल के बाहें हस भी ले, खुशी पर हक तेरा भी है, तू आसमान को जीत ले, वो शिखर भी तो तेरा ही है, तू केवल आगे बढ़ते जा, मंज़िल भी तो तेरी ही है, तो क्या हुआ कि लोग अब भी, तुझपर […]

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तू पंख लगा दे सपनों को,

आज़ादी तो तेरी भी है,

तू खोल के बाहें हस भी ले,

खुशी पर हक तेरा भी है,

तू आसमान को जीत ले,

वो शिखर भी तो तेरा ही है,

तू केवल आगे बढ़ते जा,

मंज़िल भी तो तेरी ही है,

तो क्या हुआ कि लोग अब भी,

तुझपर उठाते उंगलियां,

ये वो लोग है जो गैर है,

जिनका बस काम है बोलना,

तू रुकना मत तुझे बढ़ना है,

लोगों की बातों को ना सोचना,

तू थोड़ी मेहनत और कर,

तू थोड़ी लड़ाई और लड़,

तू दिखा दे इन सब लोगो को,

की सफलता तो तेरी भी है,

तू आशा कभी ना छोड़ना,

तू बढ़ना कभी ना रोकना,

तू याद हमेशा ये रखना,

कि मंज़िल तो तेरी भी है,

तू पंख लगा दे सपनों को,

आज़ादी तो तेरी भी है,

तू खोल के बाहें हस भी ले,

खुशी पर हक तेरा भी है।

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Likhun men satya http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/likhun-men-satya/ http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/likhun-men-satya/#respond Sun, 21 May 2023 21:39:11 +0000 http://kahanikarstudios.com/?p=52 Likhun men satya Chand dar Chand, Kalam se bandhun anant gagan, Krodhit man se krta vilap, Fir Shant man se kru Manan, Likhna Satya hai Mera karm, Par kya Satya hai satya ya bharam? Shunya se janme, khatam hai uspe, Satya hai ye ya hai jeevan? Deh kare hai sabka bhraman, Tale na talta hai […]

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Likhun men satya Chand dar Chand,

Kalam se bandhun anant gagan,

Krodhit man se krta vilap,

Fir Shant man se kru Manan,

Likhna Satya hai Mera karm,

Par kya Satya hai satya ya bharam?

Shunya se janme, khatam hai uspe,

Satya hai ye ya hai jeevan?

Deh kare hai sabka bhraman,

Tale na talta hai ye Maran,

Haathon se vinaash karta hai khudka,

Fir leta mandir men hai sharan

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पागल हाथी http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%b2-%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a5%e0%a5%80/ http://kahanikarstudios.com/2023/05/21/%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a4%b2-%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a5%e0%a5%80/#respond Sun, 21 May 2023 21:37:03 +0000 http://kahanikarstudios.com/?p=50 चूल्हे की आग, बर्तन जर्मन का, ठेला चार छक्के वाला, लोग निराले से, बातें जहां की। ठहाकों के बीच, प्यासा और पानी, दुकान की तैयारी, मग्गे का पानी, प्यासी ज़मीन। अनजाने चेहरे, कुछ अलग से सुनहरे, थकान आंखों में, नींद 5 बजे की, और चिड़चिड़ा स्वभाव। एक उखड़ा सा आदमी, जैसे पागल सा हाथी, कुछ […]

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चूल्हे की आग,

बर्तन जर्मन का,

ठेला चार छक्के वाला,

लोग निराले से,

बातें जहां की।

ठहाकों के बीच,

प्यासा और पानी,

दुकान की तैयारी,

मग्गे का पानी,

प्यासी ज़मीन।

अनजाने चेहरे,

कुछ अलग से सुनहरे,

थकान आंखों में,

नींद 5 बजे की,

और चिड़चिड़ा स्वभाव।

एक उखड़ा सा आदमी,

जैसे पागल सा हाथी,

कुछ बिस्कुट खिलाया,

अब न हाथी बेकाबू,

हाथी चाय का दोस्त।

पता पूछता हुआ आदमी,

रुक कर पिता है चाय,

निगाहें टकराती,

भीड़ में हाथी अनेक,

सब अब चायवाले के दोस्त।

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