बंजारे

ख़्वाब लिए इन आंखों में,

फिरता रहता क्यूं तू बंजारे?

किसी सफ़र के किसी शहर में,

क्या मिलेंगे तुझको कई अफसाने?

ज़िद लिए इस मुट्ठी में,

लड़ता आखिर क्यूं इस पर्वत से?

नदी की धारा को क्यों काटे?

इन सबसे क्यूं दूर तू भागे?

ये सब बस कुछ ही लम्हें है,

नसीब है इनका बीत जाता,

इन सबके जो बाद आएंगे,

उन सबको है तुझे साजना,

भाग ना इनसे तू बंजारे,

ये सब तो तेरे साथी हैं,

इन सबसे क्या तुझे चुभन है?

इन सबसे क्या तुझे घुटन है?

उठ जा रही काम बहुत है,

बची सुबह और शाम बहुत है,

थम कर उंगली मेरी अब तू,

पार सफर कर ओ बंजारे,

ख़्वाब लिए इन आंखों में,

फिरता रहता क्यूं तू बंजारे??

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