एक दिन ऐसा आए कभी,
कैनवास में बनाऊं मैं होठ तेरे,
जो छूउं तेरे उन होठों को,
शर्मा तू, गली में जा भागे।
जो सोचूं तेरी आंखों को,
इन आंखों में पानी आ जाए,
जो ना पोंछुं इन अश्कों को,
तो बाढ़ कहीं ना आ जाए।
जो पकङूं तेरी कलाई को,
तू आह करे, दिल खो जाए,
बनाऊं तेरी तस्वीर जो मैं,
सर्दी में गर्मी हो जाए,
काश कि ऐसा भी हो जानी,
जो मैं सोचूं वो हो जाए,
मैं जैसे ही तुझको सोचूं,
तू मेरे सामने हो जाए।