चूल्हे की आग,
बर्तन जर्मन का,
ठेला चार छक्के वाला,
लोग निराले से,
बातें जहां की।
ठहाकों के बीच,
प्यासा और पानी,
दुकान की तैयारी,
मग्गे का पानी,
प्यासी ज़मीन।
अनजाने चेहरे,
कुछ अलग से सुनहरे,
थकान आंखों में,
नींद 5 बजे की,
और चिड़चिड़ा स्वभाव।
एक उखड़ा सा आदमी,
जैसे पागल सा हाथी,
कुछ बिस्कुट खिलाया,
अब न हाथी बेकाबू,
हाथी चाय का दोस्त।
पता पूछता हुआ आदमी,
रुक कर पिता है चाय,
निगाहें टकराती,
भीड़ में हाथी अनेक,
सब अब चायवाले के दोस्त।